भारतीय काव्यशास्त्र/वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना
भारतीय काव्यशास्त्र में यह परंपरा अत्यंत प्राचीन काल से चली आ रही है भारतीय काव्यशास्त्र का तात्पर्य संस्कृत जगत से ही होता है क्योंकि अन्य सभी काव्यशास्त्र संस्कृत सही लिए गया था हिंदी परम कथा संस्कृत में 6 प्रकार के अबे शास्त्रों का वर्णन होता है रस संप्रदाय रीति संप्रदाय ध्वनि संप्रदाय अलंकार संप्रदाय वक्रोक्ति संप्रदाय इत्यादि संप्रदायों के प्रमुख प्रवर्तक हैं ऐसा नहीं कि इन परिवर्तनों ने ही इन संप्रदाय की स्थापना करें जैसे ध्वनि संप्रदाय इस के प्रवर्तक आनंद वर्धन आचार्य हालांकि पहले से ही प्रचलन भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में भी इसका वर्णन किया इतना जरूर है आनंद वर्धन आचार्य नहीं इसको एक व्यवस्थित क्रम से स्थापित किया वामन का रीति संप्रदाय इसको विद्वान न तो स्वीकार करते हैं और ना नकारते हैं क्योंकि काव्य आत्मा रीति वह कहते हैं इस प्रकार इस संप्रदाय का वर्णन किया जाता है