नटराजसन

सम्पादन
 
नटराजसन

नटराज भगवान शंकर को कहा गया है। भगवान शंकर का नर्तक रूप ही नटराज है। योग की यह मुद्रा शरीरिक संतुलन के लिए बहुत ही लाभप्रद है। इस योग का अभ्यास खड़ा रहकर किया जाता है।

नटराज करने की विधि

सम्पादन
  1. सबसे पहले आराम की मुद्रा में खड़े हो जाएं।
  2. शरीर का भार बाएं पैर पर स्थापित करें और दाएं घुटने को धीरे धीरे मोड़ें और पैर को ज़मीन से ऊपर उठाएं।
  3. दाएं पैर को मोड़कर अपने पीछे ले जाएं।
  4. दाएं हाथ से दाएं टखने को पकड़ें।
  5. बाएं बांह को कंधे की ऊँचाई में उठाएं।
  6. सांस छोड़ते हुए बाएं पैर को ज़मीन पर दबाएं और आगे की ओर झुकें।
  7. दांए पैर को शरीर से दूर ले जाएं।
  8. सिर और गर्दन को मेरूदंड की सीध में रखें।
  9. इस मुद्रा में 15 से 30 सेकेण्ड तक बने रहें।

नटराज करने की लाभ

सम्पादन
  1. इससे शरीर मे सन्तुलन बहुत अच्छा होता है और शरीर अधिक से अधिक लचीला होता है।
  2. इस आसन से हाथ-पैरों में रक्त संचार बेहतर होता है।
  3. इस आसन से हाथ–पैरों में जान आती है और इनकी मालिश भी हो जाती है।
  4. नटराजन आसन से काम की क्षमता अधिक बढ़ती है क्योंकि इससे एकाग्रता बढ़ती है।
  5. मन को शांत करने और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए नटराजन आसन बहुत फायदेमंद हैं।
  6. बुधापे कि अवस्था में होने वाले रोगों को दूर करने के लिए और उनसे बचने के लिए नियमित रूप से नटराजन आसन करना चाहिए।
  7. आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी और लंबे समय तक युवा रहने के लिए नटराजन आसन बहुत फायदेमंद है।
  8. शरीर पर नियंत्रण बनाने के लिए भी यह आसन लाभकारी है।
  9. यह निर्न्न्नय लेने कि क्षमता बधात है

सावधानियां

सम्पादन

जब कमर में तकलीफ हो उस समय इस योग का अभ्यास नहीं करना चाहिए। कंधों, हिप्स एवं घुटनों में कष्ट होने पर भी इसका अभ्यास रोक देना चाहिए।