विशिष्ट आपेक्षिकता/ईथर
परिचय
सम्पादनईथर कर्षण परिकल्पना
सम्पादनमाइकलसन मोर्ले प्रयोग
सम्पादनईथर का मापन
सम्पादनप्रयोग
सम्पादनप्रसिद्ध असफल प्रयोग
सम्पादनफॉलाउट
सम्पादनमाइकलसन मोर्ले प्रयोग का गणितीय विश्लेषण
सम्पादनगतिशील माध्यम में तरंग संचरण
सम्पादनसम्बंद्धता लम्बाई
सम्पादनलॉरेंट्स-फिट्ज़राल्ड परिकल्पना
सम्पादनवर्ष 1881 में पहली बार माइकलसन मोर्ले प्रयोग के बाद से ही कई बार शून्य परिणामों को समझाने का प्रयास किया गया। इसमें सबसे अधिक समस्या वाली बात यह रही कि और के समान होने की स्थिति में गति की दिशा के समान्तर लम्बाई में के गुणज के रूप में संकुचन होता है और इस स्थिति में कोई भी फ्रींज अन्तराल का प्राप्त नहीं होगा। यह सम्भावना वर्ष 1892 में फिट्ज़राल्ड द्वारा बताई गयी। लोरेंट्स ने "द्रव्य का इलेक्ट्रॉन सिद्धान्त" प्रतिपादित किया जिससे इस संकुचन को समझाया जा सके।
विद्यार्थी कई बार यह मानकर गलती कर देते हैं कि लॉरेंट्स रूपांतरण और लॉरेंट्स-फिट्ज़राल्ड संकुचन समतुल्य हैं। हालांकि समय विस्फारण प्रभाव के अभाव में लॉरेंट्स-फिट्ज़राल्ड परिकल्पना से दो अलग वेगों वाले उपकरणों के मध्य फ्रींजे परिवर्तन दिखाई देगा। पृथ्वी का घुर्णन के साथ इस प्रभाव का प्रेक्षण सम्भव है क्योंकि पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ़ अपनी कक्षा में घूर्णन करती है। कैनेडी और थार्नडाइक (1932) बहुत ही अधिक अल्पतमांक वाले उपकरण के साथ माइकलसन-मोर्ले प्रयोग किया जो पृथ्वी के घूर्णन प्रभाव को संसूचित कर सकता था और उन्होंने कोई प्रभाव प्रेक्षित नहीं किया। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि समय विस्फारण और लॉरेंट्स-फिट्ज़राल्ड संकुचन दोनों होते हैं और इस तरह आपेक्षिकता सिद्धान्त की पुष्टि हुई।
यदि केवल लॉरेंट्स-फिट्ज़राल्ड संकुचन लागू किया जाता है तो वेग में परिवर्तन के कारण फ्रींजों की संख्या में का परिवर्तन होगा। ध्यान दें कि प्रयोग में अधिक शुद्धता से प्रेक्षण की आवश्यकता है क्योंकि पथांतर में परिवर्तन का है और बहुत अधिक सम्बंद्धता लम्बाई की आवश्यकता है।