"हिंदी भाषा और साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल)/आलोचना": अवतरणों में अंतर

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→‎द्विवेदी युग: यद्यपि के साथ किन्तु था मैं यद्यपि के साथ किन्तु को हटाकर तथापि लगा दिया
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अध्यापकीय आलोचना की शुरुआत भी द्विवेदी युग की ही देन है। बाबू श्यामसुंदरदास ने एम.ए. के पाठ्यक्रम के लिए 'साहित्यालोचन', 'रूपक-रहस्य' और 'भाषा-रहस्य' नामक आलोचनात्मक ग्रन्थ लिखा।
 
इस युग के आलोचना के स्वरूप के विषय में आ० शुक्ल का मानना था— “यद्यपि द्विवेदी युग में विस्तृत समालोचना का मार्ग प्रशस्त हो गया था, किन्तुतथापि वह आलोचना भाषा के गुण-दोष विवेचन, रस, अलंकार आदि की समीचीनता आदि बहिरंग बातों तक ही सीमित थी।”
 
=== शुक्ल युग ===