व्यापारिक घरानों की सामाजिक जिम्मेदारी/राष्ट्रीय सीएसआर केंद्र
देश में सीएसआर गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए मुंबई में बने टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंस या टीआईएसएस में राष्ट्रीय सीएसआर केंद्र की स्थापना की गयी है। यह संस्थान औ़़द्योगिक घरानों की सामाजिक जिम्मेदारी की परियोजनाओं पर शोध तथा थिंक टैंक की तरह काम करता है। इस केंद्र को सार्वजनिक उपक्रम विभाग धन उपलब्ध कराता है। यह केंद्र राष्ट्रीय स्तर पर आंकड़ों का संग्रहण और दस्तावेजीकरण करता है और इसका उद्देश्य राष्ट्रीय विकास के लक्ष्यों के साथ एकीकरण करना है।
सीएसआर सम्बंधी नए दिशानिर्देशों का जोर हल्केपन से अपनाये गए तरीकों के बजाए परियोजना आधारित और जिम्मेदारी परक है। इस बात पर भी जोर दिया जा रहा है कि सामाजिक कल्याण की परियोजनाएं सर्वेक्षण पर आधारित हों और इसमें निगरानी और ठोस तरह से कार्यक्रम लागू किये जायें। इसमें यह भी कहा गया है कि सीएसआर कार्यक्रमों को कंपनियों के आम कर्मचारियों के बजाए विशेषज्ञ एंजेसियों के माध्यम से करवाया जाये। इन एजेंसियों में समुदाय आधारित संगठनों (एनजीओ), पंचायत संगठन, अकादमिक संस्थान, ट्रस्ट एवं मिशन, स्यवं सहायता समूह, महिला मंडल आदि शामिल हैं।
अमेरिका के नार्टे डेम विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और सीएसआर विशेषज्ञ प्रोफेसर लियो बुर्के के अनुसार भारत को इस मामले में राष्ट्रीय स्थानीय दृष्टिकोण अपनाना होगा ।
यह तर्क कि व्यापार का प्राथमिक काम लाभ कमाना और कर चुकाना है तथा यह केंद्र, राज्य स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी है कि वह आवश्यक सामाजिक ढांचा बनाये, अभी तक प्रचलन में हैं। लेकिन एक उद्योग को स्वस्थ एवं शिक्ष्िात कामगार चाहिये जिससे काम को दक्षता से अंजाम दिया जा सके । किसी भी समाज को उन्नति करने के लिए लाभप्रद और प्रतिस्पर्धी व्यापार को अवश्य ही बढ़ावा देना चाहिये और आय एवं अवसरों को मजबूत बनाना चाहिए । इसे सृजनात्मक साझा मूल्य कहा गया है और यह कंपनियों और समाज के व्यापक हित में है । इससे ही सीएसआर का आधार विस्तृत होगा और कंपनियों की यह समझ बढ़ेगी कि उनके कामगारों के लिए क्या अच्छा है और उसके कर्मचारियों का स्वास्थ्य और पर्यावरण भी उनके व्यापर के लिए लाभदायक है ।