सामान्य अध्ययन २०१९
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  • सतत् विकास सेल (Sustainable Development Cell-SDC) की स्थापना का निर्णय कोयला मंत्रालय ने देश में कोयला खनन को पर्यावरण के दृष्टिकोण से सतत् बनाने के उद्देश्य से किया है।

इसका उद्देश्य खनन कार्य बंद होने के बाद पर्यावरण को होने वाले नुकसान से निपटना है। SDC पर्यावरण नुकसान को कम करने के उपायों पर एक नीतिगत फ्रेमवर्क तैयार करके कोयला कंपनियों को सलाह देगा। उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग और खनन के कारण पर्यावरण की हानि को न्यूनतम करने पर विशेष ध्यान दिया जायेगा। इसके अलावा यह कोयला मंत्रालय के नोडल निकाय के रूप में कार्य करेगा। इसका कार्य योजनाबद्ध तरीकों से आँकड़ों का संग्रह और विश्लेषण,सूचनाओं की प्रस्तुति,सूचना आधारित योजना तैयार करना,सर्वोत्तम अभ्यासों को अपनाना,परामर्श,नवोन्मेषी विचार,स्थल विशेष दृष्टिकोण ज्ञान को साझा करना तथा लोगों और समुदायों के जीवन को आसान बनाना है। इसके अलावा SDC भूमि के पुनर्वितरण और वनीकरण,वायु गुणवत्ता,उत्सर्जन एवं ध्वनि प्रवर्द्धन, खान जल प्रबंधन,खानों का सतत प्रबंधन,सतत् खान पर्यटन, योजना और निगरानी पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही नीति, शोध, शिक्षा और विस्तार का कार्य करेगा।

  • भारत,मार्च 2020 में 36वें अंतर्राष्‍ट्रीय भूवैज्ञानिक कॉन्ग्रेस (International Geological Congress-IGC) की मेज़बानी करेगा। 35वें अंतर्राष्‍ट्रीय भूवैज्ञानिक कॉन्ग्रेस का आयोजन केपटाउन,दक्षिण अफ्रीका में वर्ष 2016 में किया गया था।

नई दिल्‍ली में आयोजित होने वाली इस कॉन्ग्रेस की थीम है- “भू-विज्ञान: समावेशी विकास के लिये मूलभूत विज्ञान” (Geosciences: The Basic Science for a Sustainable Future)।

अंतर्राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक कॉन्ग्रेस (IGC) पृथ्वी विज्ञान की उन्नति का प्रतिष्ठित वैश्विक मंच है। IGC के प्रथम सत्र का आयोजन वर्ष 1878 में फ्राँस में किया गया था। इसका उद्देश्य वैश्विक भूवैज्ञानिक समुदाय को नियमित अंतराल पर बैठक के लिये एक संगठनात्मक ढाँचा तैयार करने का अवसर प्रदान करना था।

IGC को भू-वैज्ञानिकों का ओलम्पिक के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रतिष्ठित वैश्विक भूवैज्ञानिक सम्मेलन का आयोजन चार वर्षों में एक बार किया जाता है। इस सम्‍मेलन में विश्व के लगभग 5000-6000 भूवैज्ञानिक भाग लेते हैं।

36वाँ IGC व्यापक विज्ञान कार्यक्रम है। इस सम्मेलन के लिये खान मंत्रालय (Ministry of Mines) और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय धनराशि उपलब्‍ध कराएंगे।

सम्‍मेलन के आयोजन में भारतीय राष्‍ट्रीय विज्ञान अकादमी (Indian National Science Academy-INSA) तथा बांग्‍लादेश, पाकिस्‍तान, नेपाल और श्रीलंका की राष्‍ट्रीय विज्ञान अकादमी सहयोग प्रदान करेंगे। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India) इस आयोजन की नोडल एजेंसी है। भारत दूसरी बार करेगा IGC की मेज़बानी भारत एकमात्र एशियाई देश है जो दूसरी बार इस सम्‍मेलन का आयोजन कर रहा है। भारत ने पहली बार वर्ष 1964 में 22वें IGC (एशिया में पहला) का आयोजन किया था। इसका उद्घाटन तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति डॉ. सर्वपल्‍ली राधाकृष्‍णन ने किया था।

  • केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने राष्ट्रीय संसाधन दक्षता नीति का मसौदा तैयार किया है। इसका उद्देश्य अगले पाँच वर्षों में प्रमुख सामग्रियों की पुनर्चक्रण दर को 50% तक बढ़ाना और भारत को अवशिष्ट प्रबंधन में सक्षम बनाना है।

इस नीति का मुख्य एजेंडा चक्रीय अर्थव्यवस्था विकसित करना है। यह दो उपायों द्वारा प्राप्त की जा सकती है- पहला सामग्री के पुनर्चक्रण द्वारा और दूसरा संसाधनों के उपयोग की दक्षता में वृद्धि करके।

मसौदा नीति एक राष्ट्रीय संसाधन दक्षता प्राधिकरण स्थापित करने का प्रावधान करती है। यह प्राधिकरण विभिन्न क्षेत्रों के लिये संसाधन दक्षता रणनीतियों को विकसित करने और उन्हें तीन साल की कार्य-योजना में शामिल करने में मदद करेगी।
  • राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (National Mineral Development Corporation- NMDC) को वर्ष 1958 में भारत सरकार के पूर्ण स्वामित्व वाले सार्वजनिक उपक्रम के रूप में स्थापित किया गया था।

यह इस्पात मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में है। NMDC भारत का सबसे बड़ा लौह अयस्क उत्पादक है, जो वर्तमान में लगभग 35 मिलियन टन लौह अयस्क का उत्पादन कर रहा है।

  • वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल’ (World Gold Council-WGC) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में स्वर्ण भंडार के मामले में भारत का 10वाँ स्थान है।

भारत का स्वर्ण भंडार दो दशकों में 357.8 टन से बढ़कर वर्तमान में 618.2 टन हो गया है। जब कोई देश निर्यात से अधिक आयात करता है तो उसकी मुद्रा का अवमूल्यन (Devaluation) होगा, वहीँ दूसरी ओर किसी देश का शुद्ध निर्यातक होने पर उसकी मुद्रा का अधिमूल्यन (Revaluation) होता है।

  • डोनिमलाई खान(Donimalai Mine)-कर्नाटक के बेल्लारी ज़िले में स्थित इस खान से राष्ट्रीय खनिज विकास निगम ने खनन कार्य शुरू किया है।

इसका उद्देश्य लौह अयस्क की आपूर्ति में वृद्धि करना और इसकी कीमतों में कमी लाना है। वर्तमान में राज्य में लौह अयस्क खनन कर्त्ताओं ने लागत में वृद्धि तथा कमज़ोर मांग के कारण इसका परिचालन बंद कर दिया गया है। राष्ट्रीय खनिज विकास निगम के पास वर्ष 1968 से ही डोनिमलाई खदान है, इसने नवंबर में इस खान को निलंबित कर दिया था, क्योंकि कर्नाटक सरकार ने लौह अयस्क पर 80% प्रीमियम की मांग की थी जिससे अगले 20 वर्षों के लिये उसका पट्टा नवीनीकृत किया जा सके। राष्ट्रीय खनिज विकास निगम(National Mineral Development Corporation- NMDC)

वर्ष 1958 में भारत सरकार के पूर्ण स्वामित्व वाले सार्वजनिक उपक्रम के रूप में स्थापित किया गया था, यह इस्पात मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में है।
यह भारत का सबसे बड़ा लौह अयस्क उत्पादक है, जो वर्तमान में लगभग 35 मिलियन टन लौह अयस्क का उत्पादन कर रहा है।
यह लौह अयस्क, ताँबा, रॉक फॉस्फेट, चूना पत्थर, डोलोमाइट, जिप्सम, बेंटोनाइट, मैग्नेसाइट, हीरा, टिन, टंगस्टन और ग्रेफाइट जैसे खनिजों का भी खनन करता है।
इसे लोक उद्यम विभाग द्वारा वर्ष 2008 में "नवरत्न" का दर्जा दिया गया था।इसका कॉर्पोरेट कार्यालय हैदराबाद में स्थित है।
  • प्रकाश पोर्टल(PRAKASH portal)

विद्युत् संयंत्रों को कोयला आपूर्ति में सुधार हेतु लॉन्च यह पोर्टल खानों में कोयला स्टॉक की मैपिंग के साथ ही हितधारकों को रेलवे रेक के आवागमन और विद्युत् संयंत्रों में कोयले की उपलब्धता की निगरानी में भी मदद करेगा। प्रकाश पोर्टल का पूरा नाम (Prakash- Power Rail Koyla Availability through Supply Harmony) है। इसका मुख्य उद्देश्य विद्युत् संयंत्रों को कोयला आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु विद्युत्, कोयला और रेलवे मंत्रालयों के बीच समन्वय में सुधार करना है। वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में देश में कोयले का उत्पादन सालाना 4% घटकर 304 मीट्रिक टन रह गया जिसका मुख्य कारण अत्यधिक बारिश के चलते खनन कार्यों में बाधा उत्पन्न होना है। इस पोर्टल के माध्यम से कोयला कंपनियों को प्रभावी उत्पादन योजना हेतु पावर स्टेशनों पर स्टॉक और आवश्यकता को ट्रैक करने में सहायता मिलेगी क्योंकि एक निश्चित मात्रा से अधिक कोयला भंडारित करने पर आग लगने की संभावना बनी रहती है। हालाँकि, विद्युत् मंत्रालय की हाल ही में लॉन्च की गई अन्य वेबसाइटों के विपरीत, यह पोर्टल आम जनता के लिये सुलभ नहीं है।

  • इस्पात आयात निगरानी प्रणाली (सिम्स)(Steel Import Monitoring System-SIMS)

16 सितंबर, 2019 को वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने इस्पात आयात निगरानी प्रणाली लॉन्च की।[] यह प्रणाली संयुक्त राज्य इस्पात आयात निगरानी और विश्लेषण (Steel Import Monitoring and Analysis-SIMA) प्रणाली के अनुरूप इस्पात मंत्रालय के परामर्श से विकसित की गई है। सिम्स सरकार और इस्पात उद्योग (उत्पादक) तथा इस्पात उपभोक्ता (आयातक) सहित हितधारकों को इस्पात आयातों के बारे में अग्रिम सूचना देगा, ताकि कारगर नीतिगत दखल दिया जा सके। इस प्रणाली के तहत विशेष इस्पात उत्पादों के आयातकों को सिम्स के वेबपोर्टल पर आवश्यक सूचना देते हुए अग्रिम रूप से पंजीकरण कराना होगा। यह पंजीकरण ऑनलाइन किया जाएगा। आयातित माल के आगमन की संभावित तारीख के पहले आयातक पंजीकरण के लिये आवेदन कर सकते हैं। यह पंजीकरण माल आगमन के 60वें दिन से पहले और 15वें दिन के बाद नहीं किया जाना चाहिये। स्वचालित आधार पर प्राप्त होने वाली पंजीकरण संख्या 75 दिन की अवधि तक मान्य रहेगी। सिम्स पर आयातकों द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाली इस्पात आयात सूचना की निगरानी इस्पात मंत्रालय करेगा। यह 1 नवंबर, 2019 से प्रभावी होगी।

  • बीरभूम कोयला क्षेत्र (पश्चिम बंगाल) का देउचा पंचमी कोयला ब्लॉक विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कोयला ब्लॉक है। बीरभूम कोयला क्षेत्र में प्रस्तावित खनन परियोजना हाल ही में इस क्षेत्र के लोगों की अपेक्षित पर्यावरणीय चिंताओं और विस्थापन के कारण चर्चा में रही है।
कोयला भंडारण की क्षमता के कारण यह कोयला खदान एशिया का सबसे बड़ा कोयला खदान या कोयला ब्लॉक है।

यह पश्चिम बंगाल की सबसे नई कोयला खदान है।

  • डीप ओशन मिशन केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है। इन तकनीकी विकासों को सरकार की एक अम्ब्रेला(यानी समग्र) योजना; महासागरीय सेवा,प्रौद्योगिकी,अवलोकन,संसाधन मॉडलिंग और विज्ञान (Ocean Services,Technology,Observations,Resources Modelling and Science-O-SMART) के तहत वित्तपोषित किया जाएगा। यह मिशन 35 साल पहले इसरो द्वारा शुरू किये गए अंतरिक्ष अन्वेषण के समान गहरे महासागर का पता लगाने का प्रस्ताव करता है।
  • पेट्रोटेक- 2019 (PETROTECH -2019),भारत का प्रमुख हाइड्रोकार्बन सम्मेलन,भारत सरकार के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तत्वावधान में, भारत एक्सपो सेंटर, ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश में आयोजित किया जा रहा है।

PETROTECH एक द्विवार्षिक कार्यक्रम है। PETROTECH तेल और गैस उद्योग में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों के लिये विचारों का आदान-प्रदान करने और ज्ञान, विशेषज्ञता और अनुभवों को साझा करने का एक मंच है।

जल संसाधन

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  • बलिमेला जलाशय को ओडिशा और आंध्र प्रदेश सरकारों की एक संयुक्त बालिमेला परियोजना (Balimela Project) के तहत स्थापित किया गया है।

बालिमेला परियोजना मचकुंड-सिलेरू नदी के विकास का दूसरा चरण है,इसका पहला चरण मचकुंड परियोजना है। सिलेरू नदी,सबरी नदी की एक सहायक नदी है। इसका उद्गम आंध्र प्रदेश में होता है और यह सबरी नदी में विलय से पहले ओडिशा से होकर बहती है। सिलेरू को ऊपरी भाग में मचकुंड के नाम से जाना जाता है। यह आंध्र प्रदेश,छत्तीसगढ़ और ओडिशा के त्रि-जंक्शन सीमा क्षेत्र में सबरी नदी से मिलती है। गोदावरी नदी के साथ विलय करने के लिये सबरी नदी आंध्र प्रदेश की सीमा को पार करती है।

  • कालेश्वरम् लिफ्ट सिंचाई परियोजना तेलंगाना में गोदावरी नदी पर स्थित एक बहुउद्देश्यीय सिंचाई परियोजना है।

यह विश्व की सबसे बड़ी बहुउद्देशीय लिफ्ट सिंचाई परियोजना है। इस परियोजना को जलाशयों,पानी की सुरंगों, पाइपलाइनों और नहरों की एक एक जटिल व्यवस्था से सुसज्जित किया गया है जिसके फलस्वरूप गोदावरी के पानी को ऊँचाई वाले स्थानों की ओर प्रवाहित किया जा रहा है। गोदावरी औसत समुद्र तल (Mean Sea Level) से 100 मीटर नीचे बहती थी जबकि तेलंगाना औसत समुद्र तल से 300 से 650 मीटर ऊपर स्थित है। इस परियोजना ने विश्व की सबसे लंबी पानी की सुरंगों,एक्वा नलिकाओं (Aqua Ducts), भूमिगत वृद्धि पूल (Underground Surge Pool) और सबसे बड़े पंपों के साथ कई रिकॉर्ड बनाए हैं।

इस परियोजना के तहत कोंडापोखम्मा सागर जलाशय के पास 618 मीटर की ऊँचाई पर पानी की आपूर्ति की जाती है।
  • अटल भूजल योजना (ABHY) सामुदायिक भागीदारी के साथ भूजल के सतत प्रबंधन के लिये 6,000 करोड़ रुपए की एक केंद्र प्रायोजित योजना है।

यह योजना जल उपयोगकर्त्ता संघों, जल बजट, ग्राम-पंचायत स्तर पर जल सुरक्षा योजनाओं की तैयारी और कार्यान्वयन आदि के माध्यम से लोगों की भागीदारी की परिकल्पना करती है। इसका कार्यान्वयन जल शक्ति मंत्रालय (पहले इसे जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के रूप में जाना जाता था ) के द्वारा किया जा रहा है। इस योजना को भारत और विश्व बैंक द्वारा 50:50 के आधार पर वित्तपोषित किया जा रहा है। इस योजना के कार्यान्वयन के लिये चिंन्हित ‘अति जलदोहन एवं जल-तनाव (Water Stress) वाले क्षेत्र’ गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश हैं। राज्यों का चयन भूजल दोहन और क्षरण, स्थापित कानूनी एवं नियामकीय उपकरणों, संस्थागत तैयारी और भूजल प्रबंधन से संबंधित पहलों को लागू करने में अनुभव के अनुसार किया गया है।

  • जल शक्ति मंत्रालय ने केरल और तमिलनाडु के बीच मुल्लापेरियार बांध से संबंधित मुद्दे के समाधान के लिये तीन सदस्यीय पर्यवेक्षी समिति का गठन किया है।

1960 के बाद से इस मुद्दे को लेकर दोनों राज्यों के बीच तनाव बना हुआ है। जिसमें केरल ने बांध की सुरक्षा और बांध के जल स्तर में कमी के बारे में चिंताओं का हवाला दिया। तो वहीं इस बांध से तमिलनाडु के पाँच ज़िलों में जलापूर्ति, सिंचाई और बिजली उत्पादन के महत्त्व को देखते हुए तमिलनाडु ने लगातार इसका विरोध किया है।

मुल्लापेरियार बांध केरल के इडुक्की ज़िले में मुल्लायार और पेरियार नदियों के संगम पर स्थित है।

इसके द्वारा तमिलनाडु राज्य अपने पाँच दक्षिणी ज़िलों के लिये पीने के पानी और सिंचाई की आवश्यकताओं को पूरा करता है। ब्रिटिश शासन के दौरान 999 साल के लिये किये गए एक समझौते के अनुसार, इसके परिचालन का अधिकार तमिलनाडु को सौंपा गया था। इस बांध का उद्देश्य पश्चिम की ओर बहने वाली पेरियार नदी के पानी को तमिलनाडु में वृष्टि छाया क्षेत्रों में पूर्व की ओर मोड़ना है

पेरियार नदी 244 किलोमीटर की लंबाई के साथ केरल राज्य की सबसे लंबी नदी है। इसे ‘केरल की जीवनरेखा’ के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह केरल राज्य की बारहमासी नदियों में से एक है।

पेरियार नदी पश्चिमी घाट की शिवगिरी पहाड़ियों से निकलती है और ‘पेरियार राष्ट्रीय उद्यान’ से होकर बहती है। मुख्य सहायक नदियाँ- मुथिरपूझा, मुल्लायार, चेरुथोनी, पेरिनजंकुट्टी

  • पोलावरम बहुउद्देशीय परियोजना (या इंदिरा सागर पोलावरम परियोजना) के निर्माण कार्य की अवधि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दो साल आगे बढ़ा दिया गया है। इसके तहत गोदावरी नदी पर मिट्टी एवं पत्थर युक्त बांध बनाने की परिकल्पना की गई है। बांध की अधिकतम ऊँचाई 48 मीटर निर्धारित है,इससे लगभग 3 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित होगी, 960 मेगावाट की स्थापित क्षमता के साथ पनबिजली उत्पन्न की जाएगी।

इस परियोजना के आसपास के 540 गाँवों में पेयजल सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी जिससे विशाखापत्तनम, पूर्वी गोदावरी एवं पश्चिमी गोदावरी और कृष्णा ज़िलों में रहने वाले लगभग 25 लाख लोग शामिल होंगे। पृष्ठभूमि-वर्ष 2011 में तत्कालीन सरकार ने आंध्र प्रदेश सरकार को परियोजना का निर्माण कार्य करने से रोक देने का आदेश दिया था। वर्ष 2014 में सरकार ने पोलावरम परियोजना को एक राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर दिया तथा मंत्रालय ने निर्माण कार्यों की अनुमति देकर ‘काम रोकने के आदेश’ (Stop Work Order) को ठंडे बस्ते में डाल दिया।आंध्र प्रदेश के पश्चिमी गोदावरी ज़िले के पोलावरम मंडल के रम्मय्यापेट (Ramayampet) के निकट गोदावरी नदी पर स्थित है। आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी, विशाखापत्‍तनम, पश्‍चिमी गोदावरी और कृष्‍णा ज़िलों में सिंचाई, जल विद्युत सुविधा विकसित करने और पेयजल सुविधाएँ प्रदान करने के लिये तैयार किया गया है।

  • रेणुकाजी बांध बहुद्देशीय परियोजना के एक अनुबंध पर छः राज्यों-दिल्ली,हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान ने हस्ताक्षर किये।
हिमाचल प्रदेश के सिरमोर ज़िले में यमुना की सहायक गिरि नदी पर निर्मित की जाएगी। इस परियोजना के अंतर्गत 148 मीटर ऊँचा बांध बनाया जाएगा तथा इससे दिल्ली व अन्य बेसिन राज्यों को 23 क्यूसेक जल की आपूर्ति की जाएगी।
यमुना और इसकी दो सहायक नदियों–टोंस और गिरी पर बनाई जाने वाली संग्रह परियोजनाओं का हिस्सा है। अन्य दो परियोजनाएँ- यमुना नदी पर लखवार परियोजना तथा टोंस नदी पर किसाऊ परियोजना है।

वर्ष 2008 में इन तीनों परियोजनाओं को राष्ट्रीय परियोजनाओं का दर्ज़ा दिया गया था।

संसाधन

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हाल ही में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस तथा इस्पात मंत्रालय (Ministry of Petroleum and Natural Gas & Steel) ने इस्‍पात उद्योग से हरित इस्‍पात (Green Steel) मिशन के उद्देश्‍यों को प्राप्त करने की दिशा में काम करने का आह्वान किया है। हरित इस्पात, इस्पात निर्माण की ऐसी प्रक्रिया को संदर्भित करता है जो हरितगृह गैसों के उत्सर्जन को कम करने और कम लागत के साथ-साथ इस्पात की गुणवत्ता में सुधार करता है। यह कार्य कोयले के स्थान पर गैस का प्रयोग तथा इस्पात के पुनर्चक्रण से ही संभव है। इसी संदर्भ में भारत के पूर्वी हिस्से में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस तथा इस्पात मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री ऊर्जा गंगा परियोजना की शुरुआत की गई है। यह परियोजना इस क्षेत्र में स्थित सभी इस्पात संयंत्रों को गैस की आपूर्ति करेगी। इसके अलावा इस्पात निर्माण की प्रक्रिया में कोयले की जगह लेने में मदद करेगी क्योंकि कोयले के उपयोग से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का अधिक उत्सर्जन होता है।

  • किम्बर्ले प्रक्रिया प्रमाणन योजना

Kimberley Process Certification Scheme नई दिल्ली में किम्बर्ले प्रक्रिया प्रमाणन योजना (Kimberley Process Certification Scheme- KPCS) की बैठक (भारत की अध्यक्षता में) आयोजित की जा रही है। किम्बर्ले प्रक्रिया हीरे के दुरुपयोग को रोकने के लिये कई देशों,उद्योगों और नागरिक समाजों की एक संयुक्त पहल है। वर्तमान में KPCS के 55 सदस्‍य 82 देशों का प्रतिनिधित्‍व कर रहे हैं, इसमें यूरोपीय संघ के 28 सदस्‍य देश भी शामिल हैं । भारत, KPCS के संस्‍थापक सदस्‍यों में से एक है। किम्‍बर्ले प्रक्रिया प्रमाणन योजना की अध्यक्षता की ज़िम्मेदारी सदस्‍य देशों को बारी-बारी से सौंपी जाती है। आमतौर पर प्रत्येक वर्ष इसके उपाध्‍यक्ष का चुनाव किम्बर्ले प्रक्रिया प्‍लेनेरी (Kimberley Process Plannery) द्वारा किया जाता है, जिसे अगले वर्ष अध्‍यक्ष बना दिया जाता है। वर्ष 2019 के लिये रूसी संघ को KPCS का उपाध्‍यक्ष बनाया गया है।

  • एक रिपोर्ट के अनुसार, आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम बांध (Srisailam Dam) की स्थिति खराब होने के कारण इसके मरम्मत, संरक्षण और रख-रखाव कार्यों की तत्काल आवश्यकता है।

यह बाँध आंध्र प्रदेश के कुन्नूर ज़िले में कृष्णा नदी पर अवस्थित है। वर्ष 1960 में शुरू की गई यह परियोजना देश में दूसरी, सबसे अधिक क्षमता वाली पनबिजली परियोजना है। इस बाँध का निर्माण समुद्र तल से लगभग 300 मीटर की ऊँचाई पर नल्लामलाई पहाड़ियों की एक गहरी खाई में किया गया है।

  • महाराष्ट्र में गोदावरी अवस्थित जयकवाड़ी बांध (Jayakwadi Dam) पर लगे भूकंपमापी उपकरण ने र्काय करना बंद कर दिया है।

इस भुकंपमापी उपकरण को वर्ष 1993 में लातूर ज़िले के किलारी में आए विनाशकारी भूकंप के बाद स्थापित किया गया था। भूकंपीय तरंगों को मापने और रिकॉर्ड करने के लिये सिस्मोमीटर (Seismometer) नामक उपकरण का प्रयोग किया जाता है। यह बाँध महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िले में गोदावरी नदी पर अवस्थित है। औरंगाबाद शहर को ‘दरवाज़ों का शहर’ भी कहा जाता है। इस बांध का उद्देश्य मराठवाडा जैसे क्षेत्र में वर्षाकाल के दौरान आई बाढ़ तथा बाकी समय में पड़ने वाले सूखे जैसी समस्याओं से निपटना है।

 
  • महादयी नदी (Mhadei River)पर प्रस्तावित कलासा बंदूरी परियोजना का गोवा राज्य द्वारा विरोध किया जा रहा है।

महादयी नदी को गोवा राज्य की जीवन रेखा नदी के रूप में माना जाता है। गोवा की राजधानी पणजी इसी नदी के किनारे अवस्थित है। भारत की इस सबसे छोटी नदियों में से एक है तथा इस नदी का उद्गम कर्नाटक के बेलगाम ज़िले के खानपुर नामक स्थान होता है और यह उत्तरी गोवा के सतारी नामक स्थल में प्रवेश करती है। गोवा में प्रवेश करने के बाद इसमें कई धाराएँ आकर मिलती हैं जिसके बाद यह मंडोवी के नाम से जानी जाती है। लगभग 111 किलोमीटर लंबी इस नदी का दो-तिहाई भाग गोवा में है। चूँकि गोवा की अन्य नदियाँ लवणीय जल युक्त हैं, वहीं मंडोवी जो एक मीठे जल का स्रोत होने के साथ -साथ जल सुरक्षा, पारिस्थिकी और मछली पालन का भी एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। मंडोवी नदी बेसिन अपनी सहायक नदियों के साथ गोवा, कर्नाटक और महाराष्ट्र के सीमावर्ती क्षेत्रों में जलापूर्ति करती है। कलासा बंदूरी परियोजना का उद्देश्य महादयी नदी के जल का डायवर्ज़न करके उसे उत्तरी कर्नाटक के तीन ज़िलों में पहुँचाना है।

राष्ट्रीय खनिज नीति 2019

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उद्देश्य अधिक प्रभावी, सार्थक और कार्यान्वयन योग्य नीतियाँ तैयार करना है जो संधारणीय खनन अभ्यासों के साथ ही पारदर्शिता, बेहतर विनियमन और प्रवर्तन, संतुलित सामाजिक तथा आर्थिक विकास को भी बढ़ावा देती है। यह राष्ट्रीय खनिज नीति 2008 को प्रतिस्थापित करती है। प्रमुख विशेषताएँ: RP/PL धारकों के लिये ‘पहले अस्वीकार के अधिकार’ की शुरुआत। पहले अस्वीकार का अधिकार: यह एक संविदात्मक अधिकार है जिसके तहत एक विक्रेता द्वारा एक पक्षकार (जैसे एक साझेदार) को एक निर्दिष्ट समयसीमा के भीतर उन कीमतों पर प्रतियोगिता का अवसर दिया जाना चाहिये, जिस पर उन्ही शर्तों पर कोई तीसरा पक्ष एक निर्दिष्ट संपत्ति खरीदने के लिये सहमत होता है (जैसे कि शेयरों की एक निश्चित संख्या)। अत: कथन 1 सही है। निजी क्षेत्रों को अन्वेषण करने के लिये प्रोत्साहित करना। राजस्व-साझा के आधार पर समग्र अन्वेषण (Reconnaissance Permit)-सह-प्रॉस्पेक्टिंग लाइसेंस (Prospecting License)-सह-खनन पट्टे (Mining Lease) के लिये नए क्षेत्रों की नीलामी। खनन कंपनियों के विलय और अधिग्रहण को प्रोत्साहित करना। निजी क्षेत्र के खनन क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिये खनन पट्टों का हस्तांतरण और समर्पित खनिज गलियारों का निर्माण। राष्ट्रीय खनिज नीति 2019 में निजी क्षेत्रों में खनन हेतु वित्तपोषण को बढ़ावा देने के लिये और निजी क्षेत्रों द्वारा अन्य देशों में खनिज संपत्ति के अधिग्रहण के लिये खनन गतिविधियों को उद्योग का दर्जा देने का प्रस्ताव किया गया है। इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि खनिजों के लिये दीर्घकालिक आयात-निर्यात नीति से निजी क्षेत्र को व्यापार हेतु बेहतर योजना और व्यापार में स्थिरता लाने में मदद मिलेगी। नीति में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को दिये गए आरक्षित क्षेत्रों जिनका उपयोग नहीं किया गया है, को युक्तिसंगत बनाने और इन क्षेत्रों को नीलामी हेतु रखे जाने का भी उल्लेख किया गया है, जिससे निजी क्षेत्र को भागीदारी के अधिक अवसर प्राप्त होंगे। नीति में निजी क्षेत्र की सहायता करने के लिये वैश्विक मानदंड के साथ कर, लेवी और रॉयल्टी को युक्तिसंगत बनाने के प्रयासों का भी उल्लेख किया गया है। 2019 नीति अंतर-पीढ़ी समता (Inter-Generational Equity) की अवधारणा को भी प्रस्तुत करती है जो न केवल वर्तमान पीढ़ी के कल्याण के लिये कार्य करती है बल्कि आने वाली पीढ़ियों हेतु तंत्र को संस्थागत बनाने के लिये एक अंतर-मंत्रालयी निकाय का गठन करने का भी प्रस्ताव करती है। अतः कथन 2 सही है। नई नीति, खनिजों की निकासी और परिवहन के लिये तटीय जलमार्गों एवं अंतर्देशीय शिपिंग के उपयोग पर ध्यान केंद्रित करती है। साथ ही खनिजों के परिवहन को सुविधाजनक बनाने के लिये समर्पित खनिज गलियारों को प्रोत्साहन प्रदान करने का भी प्रस्ताव करती है

सन्दर्भ

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  1. https://pib.gov.in/Pressreleaseshare.aspx?PRID=1585281