हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/गोकुल लीला

हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)
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गोकुल लीला


जसोदा हरि पालनैं झुलावै। हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-सोइ कछु गावै।

मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहैं न आनि सुवावै।

तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै।

कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।

सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै।

इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरैं गावै।

जो सुख सूर अमर-मुनि दुरलभ,सो नँद-भामिनि पावै।