हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/विनय तथा भक्ति
रोरो मन अनत कहाँ सुख पावे।
जैसे उड़ि जहाज की पंछि, फिरि जहाज पर आवै।
कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यावै।
परम गंग को छाँड़ि पियसो, दुरमति कूप खनावै।
जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यो, क्यों करील-फल खावै।
'सूरदास' प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै।