हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/अधर वर्णन
मंझन/
सन्दर्भ
सम्पादनप्रस्तुत पंक्तियाँ कवि मंझन द्वारा रचित हैं। यह 'मधुमालती' से उद्धृत हैं। यह 'अधर-वर्णन' से अवतरित है।
प्रसंग
सम्पादनइस में मधुमालती के होठों की सुंदरता का वर्णन हुआ है। कवि ने उसके होठों की रसिकता, बनावट और सुंदरता को दिखाने के लिए विभिन्न उपमानों का सहारा किया है। उनका वर्णन करना कवि के लिए कठिन हो गया है। वह लोगों के दिलों को जलाने का काम कर रहे हैं। वे अमृत रस से युक्त हैं कई रूपों में कवि ने उसका वर्णन किया है। कवि कहता है-
व्याख्या
सम्पादनअधर अमिअ-रस भरे सोहाए......सेउँ देखत जरहिं परान।।
मधमालती के होंठ अमृत रस से युक्त हैं। वे दिखने में अति सुंदर हैं। वे लोगों के मन को सुहाते हैं अर्थात् सुंदर लग रहे हैं उनका रंग खून की तरह लाल है। उनकी खून जैसी रंगत है। वे बहुत ही प्यासे हैं। वे बहुत ही लाल रंग के हैं। वे अपनेमें कोमल एवं रस से भरे हैं। मानों उन होठों में चन्द्रमा की-सी बनावट किए हुए हैं। उन्होंने मानो चन्द्रमा को धारण कर रखा हो। उन होठों की बनावट, रसीलापन तथा सुंदरता का किसी भी तरह से वर्णन करना आसान नहीं है। अर्थात उनका वर्णन करना बहुत ही कठिन है। उन होंठों में चंद्रमा का रस निकाल कर उन में विधाता ने भर दिया है। इन होठों को मानों विधाता ने बड़े ही संभाल कर बनाया हो. ऐसा प्रतीत होता है। ये होंठ अपने में पवित्र हैं।
लगता है ये अभी अपने में अछूते हैं। अर्थात् जैसे हैं वैसे ही हैं। इन्हें छुआ ही नहीं गया है। राजकुमार जिसका मन ही इन्हें देखकर ढोल गया हो। इसका दिल इन को देखकर प्रेम में डूब गया हो। भगवान न जाने कब तक इन्हें इस तरह से धरा हुआ है। कब इनके दर्शन होंगे? यह तो विधाता ही जानता है। कवि कहता है कि जब मेरे दिल में यह बात शरीर में आई तब मैंने यह जाना। ये दोनों होंठ आग की तरह हैं, जो प्यासे हैं। इस सुहागिन के। यह संसार जान गया है इन होंठों के अमत-रूपी रस को। ये अमृत रस का खान हैं। आश्चर्य है इनके अमृत रस को देखकर दिल जलने लगता है अर्थात् प्राण निकलने को तैयार हो जाते हैं।
विशेष
सम्पादनइसमें कवि ने मधुमालती के होंठों की सुंदरता, बनावट तथा अमृत रस का चचा की है। इसके लिए उसने विभिन्न उपभावों का सहारा लिया है। अवधी भाषा है। भावों में उत्कर्ष है। किश्रित शब्दावली का प्रयोग है। इसमें अनुप्रास, उपमा, रूपक तथा दृष्यटां अलंकार का प्रयोग है।
शब्दार्थ
सम्पादनअमिअ-रस - अमृत रस। बरें = वरण करने से। रगत = रक्त। तिसाए - प्यार से। मयंकम = चन्द्रमा। पटतर = समानता, उपमान। ससि-अमी = चन्द्रमा का अमृत। गारि = निकालकर। विधि साने = विधाता ने बनाये हैं। अपीऊ = अधूते। कुंवर = राजकुमार, मनोहर। घट - शरीर अनल = आग। बरन = वर्ण, रंग। दुइ = होयें अचिजु = आश्चर्य। परान - प्राण।