हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/नेत्र वर्णन
मंझन/
सन्दर्भ
सम्पादनप्रस्तुत पंक्तियाँ कवि मंझन द्वारा रचित हैं। यह उनकी 'मधुमालती' से अवतरित हैं।
प्रसंग
सम्पादनइसमें नेत्र-वर्णन के अंतर्गत कवि ने मधुमालती के नेत्रों की बनावट तथा सुंदरता का वर्णन किया है। नेत्रों के हाव-भाव देखते ही बनते हैं नेत्र कैसे हैं, उनकी क्रियाएँ कैसी हैं, कैसी लगती हैं, आदि के बारे में कवि ने वर्णन किया है। उसी के विषय में वे कहते हैं-
व्याख्या
सम्पादनसूते स्याम सेत औ राते......निभरम पौढ़े आइ॥
मधुमालती के नेत्र श्याम रंग तथा सफेद रंग से रंजित हैं। जैसे रात के समय श्यामल तन और सफेद रंग की आभा झलकती है वैसे ही उसके नेत्रों की स्थिति है। वे श्याम और सफेद रंग से मिश्रित हैं। उसके नेत्र ऐसे लगने लगते हैं जैसे वे बाहर निकलने के लिए आतर हो रहे हों। अर्थात वे बाहर निकलने को हो रहे हों। उनकी आँखों की चंचलता तथा उनकी वक्रता देखते ही बनती है। वे अपने में काफी तेज़ हैं अर्थात् उनकी चमक में तेजी है उसके नेत्रों की भौंहें तथा पलकों के अंदर उनकी छुपी हुई स्थिति को कवि कहता है कि उसके नेत्र पलकों के अंदर छिपे हुए लेटे हुए हैं। मानों वे अंदर लेटे पड़े हों। पलकों ने उन्हें ढँक रखा हो। उसके नेत्र लोगों को मारने वाले बधिक बन गए हों। वे न जाने कितने ही लोगों के प्राणों को हरने वाले बन गए हों। अर्थात् वे लोगों के प्राणों को घायल कर रहे हों।
कई लोगों के लिए दुख का कारण बन गए हैं। वे प्राणों को लेकर पड़ रहे हैं। इस तरह से उसके नेत्र प्राणों के बंधक बन गए हैं। उनको देखकर उनपर मर मिटने की प्रबल इच्छा उत्पन्न हो गई है। आश्चर्य तो यह है कि इन नेत्रों के वर्णन करने के लिए शब्द नहीं है। अर्थात् इनकी सुंदरता का वर्णन करना कठिन हो गया है। मगर उनका वर्णन नहीं हो सकता है। जैसे मृग की आँखें होती हैं, वैसा उसकी आँखे हैं। धनुष के नीचे के भाग की तरह उसकी तिरछी आँखें हैं वे आँखें अपने में निडर हैं। वे नीचे पड़ी हुई हैं, लेटी हुई हैं। शांत-भाव से उसकी आँखें हैं।
विशेष
सम्पादनइसमें कवि ने नेत्रों को 'उभरता, बनावट तथा चंचलता का वर्णन किया है। कवि ने अनेक उपमानों का आश्रय किया है। भावों में उत्कर्ष है अवधी भाषा है। मिश्रित शब्दावली-का प्रयोग है। अनुप्रास, उपमा और रूपक अलंकारों का प्रयोग है। कवि की चित्रण-कला का पता चलता है।
शब्दार्थ
सम्पादनसुते = सूचित हैं, रंजित हैं। सेत = श्वेत, सफै। राते = रत्म, लाल। निफरि ही जाते = बाहर निकल जाते हैं । तीख = तीक्षण, तेजा। बाँके-वक्त। हुए हैं। पलक पंख - पलक रूपी पंख। ढांके - ढंके हुए है। पारधी = बधिक । जिउ हरे = प्राणों का हरण करने वाले। पौढें - लेटे हुए है। तर-नीचे। जिय केर - प्राणों के। बियाधा - बधिक। मरै के = मरने की। साधा - साध, प्रबल इच्छा। अचिजु = अचरज, आश्यर्च। सारंग = मृग। सारंग तर = धनुष के नीचे। निभरम = निर्भय, निडर।