हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/गीत/(2)बहुत कठिन है डगर पनघट की
सन्दर्भ
सम्पादनप्रस्तुत पंक्तियाँ कवि अमीर खुसरो द्वारा रचित हैं। यह उनके 'गीत' से उद्धत है।
प्रसंग
सम्पादनइसमें कवि ने एक स्त्री की कठिनाइयों का वर्णन किया है। वह कुएँ से पानी भर कर लाती है, मगर वह आने वाली परेशानी तथा लोक-लाज़ से भी डरती है। वह अकेली होने के कारण पानी लाने से डरती है। यहाँ स्त्री के मन की बातों को कवि ने व्यक्त किया है। वे कहते हैं-
व्याख्या
सम्पादनएक स्त्री के लिए कहीं दूर जगह से पानी भर कर घड़े को कंधे या सिर पर रखकर अकेले ही लाना बहुत कठिन होता है। उसी को संदर्भ में रखकर वह स्त्री कहती है-बहुत कठिन है, कहीं दूर जगह से पानी भरकर लाना। उसका मार्ग बहुत ही कठिन है, क्योंकि पानी किसी कुएँ या पानी भरने के स्थान से लाना, अपने आप में जटिल है। मैं किस तरह से, उस स्थान पर पानी भरने के लिए जाऊँ और फिर सिर पर घड़ा रखकर चलूँ। उसके लिए पानी से भरी-मटकी उठाना कष्टदायक है। हे मेरे निजाम! तुम मुझे अत्यधिक प्रिय हो। तुम मुझ पर अपनी कृपा कर दो ताकि मैं इस पानी से भरी-मटकी को आसानी से उठा सकूँ। आसानी से ले जा सकूँ। हे प्रिय! तुम ही तनिक बोलो यह कार्य कठिन है या आसान। जैसे ही मैं पानी भरने के लिए पनघट पर गई तो पता नहीं किसने मेरी मटकी को दौड़ कर जल्दी से पकड़ ली थी। यह जानकर मैं हैरान थी। वैसे तो यह मेरे लिए बहुत ही कठिन कार्य था। मैं अपने को आप पर न्योछावर करती हूँ तुमने मेरी लाज बचाई है। मेरे दुप्पटे को भी संभाला है। मैंने घूंघट को धारण कर रखा था जिसे तुमने नीचे गिरने एवं उड़ने नहीं दिया था।
विशेष
सम्पादनइसमें कवि ने स्त्री-चित्रण किया है कि वह मार्ग में पानी भरने के लिए कठिनाई अनुभव करती है। उसने निजाम के फक मुझ से अपना प्रति धन्यवाद का प्रदर्शन किया है। यही मूल संवेदना को दर्शाता है। भाषा में उर्दू के शब्दों का प्रयोग हुआ है। भावों में साच्चिकता है। इसमें कवि की रहस्य भावना भी ल्यक्त हुई है। भावों में सरलता, लयात्मकता तथा प्रवाह है। इसमें गीति-तत्त्व का पूर्णत: समावेश है।
शब्दार्थ
सम्पादननिजाम - निजामुद्दीन औलिया (गुरू)। बलि - बलिहारी। राखे - रखना। मोहे मुझे। घूंघट = पर्दा। पट = दुपटा। भरन = भरने के लिए। पनिया = पानी। मटकी - घड़ा। पिया - प्रिय। जरा तनिका लाज़ - शर्म। डगर = रास्ता। पनघट = जहाँ से पानी भर कर लाना होता है, कुआँ।