हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/त्रिबली वर्णन/(१)करी माहैं त्रिबली कसि अही।
सन्दर्भ
सम्पादनप्रस्तुत पंक्तियाँ कवि मंझन द्वारा रचित हैं यह उनकी कृति 'मधुमालती' से उद्धृत हैं। यह त्रिवली वर्णन' से अवतरित हैं
प्रसंग
सम्पादनइसमें कवि ने मधुमालती की कटि की त्रिबली की सुंदरता का वर्णन किया है। उसकी बनावट. सुंदरता तथा काम-भाव के जाग्रत होने का वर्णन किया है। कवि ने उसी को यहाँ सुंदर रूप में दर्शाया है। कवि कहता है-
व्याख्या
सम्पादनकरी माहैं त्रिबली कसि अही......उपमा देत लेजानेउ सुन्हू काहै सति भाऊ॥
मधुमालती की कटि को मैं देखकर आश्चर्य करता हूँ। वह अपने आप में सुंदर है। यह कटि कैसी है, जो उसकी बनावट को दर्शाता है। इसकी कटि में त्रिवली कैसी सुंदर और विचित्र है? मानो विधाता ने उसे बनाते समय उसने अपनी मुट्ठी से इसको इसी जगह से पकड़ा हो। में गुर्जरों की लाज को मन-ही-मन में मानता हूँ। इसी से, मैंने इसके मदन-भंडार अंग-प्रत्यगों का वर्णन नहीं किया है। इसके नितंबों को देखते ही मन जैसे उनसे चिपट का लग जाता है। उस पर दृष्टि पड़ते ही शरीर में काम-भावना जाग्रत हो जाती है। अर्थात मेरा मन उनकी तरफ आकर्षित हो जाता है। कामदेव को ही मानों जैसे माया हो। उसका शरीर काम-भाव को उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त है। इसकी युगल जंघाओं को देखकर तो मन चंचल होकर कॉप जाता है।
इस मन में भ्रम जागने से कुछ कहा नहीं जाता है। उसका लाल ंग और कोमल शरीर के अंगों को देखकर तथा शरीर की सफेदी को देखकर मन अत्यंत प्रसन्न होने लगता है। उसके मनोहर रूप को देखकर मन मोहित हो उठता है। उसके तलुप के समान तुलना करने के लिए कोई उपमा नहीं की जा सकती है। उसके शरीर से सोने जैसी आभा और केले के वृक्ष का चिकनापन और हाथी के सूंड जैसी उसके शरीर की लम्बाई सुंदर लगती है। मैं उस की उपमा करते हुए लजाता हूँ, क्योंकि वह सत्य के समान भाव लिए हुए है।
विशेष
सम्पादनइसमें कवि ने मधुमालती की कमर, नितंब तथा लम्बाई आदि का सुंदर वर्णन किया है। अवधी भाषा है। अनुप्रास, उपमा तथा उपमानों का वर्णन किया है। भावों में उत्कर्ष है सौंदर्य बोध है।
शब्दार्थ
सम्पादनकरि - कटि। माहै - मैं। कसि अहि- कैसी है। बिध. - विधाता ने। गही पकडी। मदन भंडार - गुहा का भाग। चिहुटि - चिपककर। मनमथ - मन को मथने वाला, कामदेव। जुगुल - दोनों। थहराई - चंचल, कापना। रातें - लाल। कोमल - कोमल। सेत = तलुप। पटतर - खमान। कनक - स्वर्ण। केदली केला वृक्ष। सति श्वेत, सफेद। तरूवन्ह = सत्य। भाउ = भाव।