हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/पग बांधा घुंघर्यां
मीराबाई/
सन्दर्भ
सम्पादनप्रस्तुत पद मीराबाई की पदावली से अवतरित है
प्रसंग
सम्पादनजिसमें मीराबाई ने खुलकर अपने ईष्ट श्रीकृष्ण के प्रति अपने एकनिष्ठ प्रेम-भाव को स्वीकारा और व्यक्त किया है-
व्याख्या
सम्पादन''पग बाँध घूँघर्याँ णाच्याँरी।।टेक।।
लोग कह्याँ मीरा बावरी, सासु कह्याँ कुलनासा री।
विख रो प्यालो राणा भेज्याँ, पीवाँ मीराँ हाँसाँ री।
तण मण वार्याँ परि चरिणामाँ दरसण अमरित प्यासाँ री।
मीराँ रे प्रभु गिरधर नागर, थारी सरणाँ आस्याँ री।।
मीरा कहती है कि मैं तो अपने पैरों में अपने आराध्य श्रीकृष्ण के नाप के घूँघरू बाँधकर नाच रही हूँ. मुझे किसी के सोच, बात की परवाह नहीं है। मेरी दशा देखकर कुछ लोग कहते हैं कि मीरा पागल हो गई है तो सास कहती है कि यह तो कुलटा है, पर-पुरुष पर आसक्त होने वाली है। मीरा को किसी के उलहाने, ताने निंदा की कोई परवाह नहीं है। अत: वह कहती है कि मेरे पति राणा जी ने मुझे मारने के लिए जहर का प्याला भेजा पर मैंने उसे बिना डर कर हँसकर पी लिया। मीरा कहती है कि मैंने अपना तन-मन अपने आराध्य श्रीकृष्ण के चरणों में पति-परमेश्वर गिरधर नागर हैं, श्रीकृष्ण हैं जिसके आगे मैंने अपनी सारी आशाएँ रख दी हैं।
विशेष
सम्पादन1. राजस्थानी भाषा है।
2 लयात्मकता है।
3. माधुर्य-भाव की भक्ति है।
4. एकनिष्ठ भाव व्यक्त है।
5. मीरा की बेबाकी देखी जा सकती है।
6. श्रीकृष्ण की स्तुति है।
7. मीरा की दृढ़ता देखी जा सकती है। & मीरा के समर्पण भाव के कारण ही मीरा जहर पीकर भी नहीं मरी।
9. पाँव में घुघरू बाँधकर नाचने का अर्थ है शर्म लाज छोड़कर नाचना।
10. 'कह्या कुलनासाँ'-अनुप्रास अलंकार है।
शब्दार्थ
सम्पादनपग - पैर। पाच्यारी = नाची बावरी = पागल। कुलनासाँ = कुलटा। बिख - विष, जहर। जीवों = पीकर। हाँसा - हँसी। तण = शरीर, तन| मण = मन। वार्याँ - न्यौछावर करना। चरिणाम = चरणों में। दरसण = दर्शन। अमरित = अमृत। प्यास्याँ = प्यासी। धारी = धरणा, रखना। शरण - शरण। आस्याँ - आशाएँ।