हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/अरी वरुणा की शांत कछार

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अरी वरुणा की शांत कछार


संदर्भ

अरी वरुणा की शांत कछार कविता छायावादी काव्याधारा के प्रमुख आधार स्तम्भ जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित है। साहित्यिक जगत में प्रसाद जी एक सफल व श्रेष्ठ कवि, नाटककार कथाकार व निंबंध लेखक के रूप में विख्यात रहे है।


विशेष


अरी वरुणा की शांत कछार कविता वरुणा नदी को संबोधित कर कर लिखी गई है कड़ना नदी का किनारा तमाम ऋषि-मुनियो तपस्वी एवं गौतम बुद्ध को भी शांति और अध्यात्मिक वातावरण प्रदान करती है यहा ऋषि-मुनि इसी तपोभूमि पर देवताओं के जन्म पृथ्वी पर स्वर्ग की कल्पना बुद्धि और हृदय के पारस्परिक अधिकारियों आदि विषयों पर बहस किया करते थे।


व्याख्या

कवि कहते हैं शांत कछार पर बैठकर ऋषि मुनि मंत्रणा शांति वार्ता वैराग्य से अनुरुक्ती कथा भौतिक सुख-सुविधाओं से अनिरुकत के भाव प्रकट होते हैं यही कड़ना नदी प्रथम साक्षी रहे कुछ स्वर्गीय आनंद की अनुभूति कि जब महात्मा बुध आत्मिक शांति की खोज में यहां प्रकट हुए। यहां प्रसाद अन्य समकालीन छायावादी कवियों से हटकर कल्पना के भाग जगत से दूर यथार्थ की वास्तविकता का बखान करते है इसी वरुणा नदी के किनारे लगातार धरती और आकाश के बीच पवित्र संधि चल रही है जो सांसारिक लोगों के दैहिक देविक भौतिक पापों को हरने वाली विश्राम स्थल है। कवि कहते हैं तमाम ऋषि-मनियों के लिए वरुणा कि कछार पर अवस्थित सुंदर वन छाई हुई पर बुद्धि पर पवित्र पावन भूमि है जहां क्षण की अनुभूति होती है और संसार के शोर से दूर रहकर संसार के कल्याण के लिए मंत्रों का जाप करते हैं इसी नदी के कछार पर बैठकर ऋषि मुनियों की विद्युत परिषदे लोक और परलोक के मनुष्य देवताओं के पृथ्वी और आकाश पर सूचित करते हैं कि हमारे जीवन में हम जो कुछ भोगते हैं उसमें और मस्तिष्क कितना योगदान रहता है। ऐसे ही समय में वरुण जो जो नदी की शांत कछार पर गौतम बुद्ध का अविर्भाव हुआ जिन हो जी मोरारी जगह के कल्याण के लिए अपना पूरा जीवन ज्यादा बुद्ध ने जुडे तमाम सांसारिक सुख ऐश्वर्य पत्नी यशोधरा और उसका प्रेम पिता का फ़र्ज़ पुत्र छोड़कर मानव जगत के कल्याण के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया। यहां गौतम बुद्ध के व्याष्टी से उठ कर समष्टि में समा जाने की परोपकारी भावना निहित है। संपूर्ण मानव जगत के लिए मुक्ति का संदेश देने वाली वरुणा नदी और इसकी शांति नदी और इसकी शांति किनारा सांसारिक घर बाधाओं का शंकर के जीवनदायिनी है इसको कछार पर सूर्य की किरणें गौतम बुद्ध पर पड़ती थी। जो संसार के प्राणी मात्र परछाई निराशा और दुखों के गहन अंधकार को अज्ञान के अधिकार को समाप्त कर देने वाले देश देते हैं हे मनुष्य ईश्वर दुखों विपत्तियों सोच चिंता आपदा से पीड़ित और व्याकुल होने के बजाय श्रमशील बनो अपने वर्त और संयम से तुम भी सांसारिक बंधनों को काटकर आजाद हो सकते हो मनुष्य होने के नाते यह तुम्हारा अधिकार है। गौतम अपने संदेश में जीवन के अति वादों को छोड़कर चरमपंथियों से मुक्त होने का पावन संदेश देते हुए कहा कि मनुष्य जाति ना ही तुम एकांत साधना करो और ना ही भोग विलास में डूप जाओ। इन दोनों अतिवादी कोछोड़ कर के बीच का रास्ता चुना जिससे मानव धर्म का निर्वाह हो सके दुखों का कारण मनुष्य के कर्मों में निहित होता है क्योंकि संसार में जो भी दुख है दुखों के कारण है उन्हीं में दुखों का निदान भी निहित होता है मनुष्य अपने कर्तव्य कर्म का पालन करें तो वह दुख और सुख की प्राप्ति से ऊपर अपने कर्तव्य कर्म का पालन करें तो वह दुख और सुख की प्राप्ति से ऊपर उठजाएगा और मानव विज्ञानी हो जाएगा संपूर्ण प्राकृतिक सूर्य और चंद्र गौतम बुध के इस पवित्र संदेश का प्रथम साक्ष्य है। कविता नदी के शांत वातावरण को जयशंकर प्रसाद महिमामंडित करते हुए गौरवशाली मानते हैं कि तुम्हारा यह किनारा संपूर्ण वसुधा को महात्मा बुध का अमर संदेश दे रहा है जो आज शताब्दियों बाद भी याद रखा जा रहा है और जिसकी प्रति ध्वनि गौतम बुध और बौद्ध दर्शन के बहाने विश्व भर में यश और कीर्ति का पा रही है उसका प्रथम साक्ष्य होने का गौरव तुम्हारे स्वच्छ निर्मल शांत किनारों को ही जाता है महात्मा बुद्ध के जीवन की देशों की चिंतन की साक्षी नदी का पवित्र स्थली में यह कविता रची गई उनके सिद्धांतों का उनके चिंतन मनन कविता पर है उनके सिद्धांतों का उनके चिंतन मनन का पूरा प्रभाव इस कविता में देखा जा सकता है प्रसाद की इच्छा है कि संपूर्ण मानव जाति बुध के उपदेशों का ग्रहण करके संपूर्ण प्राणी जगत का कल्याण करें।


विशेष

1) खड़ी बोली का प्रयोग है।

2)मार्मिक कविता है।

3)प्रकृति का वर्णन है।

4) माधुर्य गुण है।