हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/अरे कहीं देखा हैं तुमने
संदर्भ
अरे कहीं देखा है तुमने कविता छायावादी काव्याधारा के प्रमुख आधार स्तम्भ जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित है। साहित्यिक जगत में प्रसाद जी एक सफल व श्रेष्ठ कवि, नाटककार कथाकार व निंबंध लेखक के रूप में विख्यात रहे है।
प्रसंग
अरे अरे कहीं देखा है तुमने कविता में कवि ने प्रियतम के छोड़ जाने के बाद की स्थिति का वर्णन करते हुए कहा है कि वह प्रियतम कहां चले गए जिन्होंने मेरी सुख और दुख में साथ रहने का वचन दिया था वह कहां चले गए जो मेरी सुख कारण थे आज वह कहां है
व्याख्या
कविता में कवि अलौकिक प्रिय को खोजते हुए पूछ रहा है किक्या किसी ने उससे प्रेम करने वाले प्रियतम को कहीं देखा है यह वही है जो मेरी आंखों में प्रेम पत्र समा गया था और अब आंसू बनकर प्रभावित हो रहा है मेरे सुख भरे जीवन में आग के भांति दुख देकर। मेरा कोमल सा हृदय दुख कर संध्या रूपी जीवन को पानी से भर देने के बाद उसे खाली करने वाले व्यक्ति को कहीं देखा है अर्थात कभी कहते हैं कि जीवन में कुछ पल की खुशी देखकर फिर मुझे धोखा देकर चले जाने वाले व्यक्ति को किसी ने देखा है? रात्रि में हल्की-हल्की किरणों के सामान शरीर जल उठता है जैसे मानो जंगल में कोई आग लग गई हो और उस पर उसकी रूपी आंसुओं का शंभू बिखर गया हूं ऐसे मुझसे डरने वाले व्यक्ति को किसी ने देखा है। अंतिम पंक्तियों में कवि कहते हैं अपने बेकार से खेलों को खेलते हुए अपने सुख को को देखने वाले व्यक्ति आज क्यों कांपने लगा है अर्थात वह क्यों डर रहा है वह मौन क्यों है। अलौकिक रहस्य में प्रिय की प्रेम में अबाद्ध विरही कि व्याकुल व्यथा को व्यक्त करते हुए कभी कहते हैं आखिर आज यह प्रियतम इतने मौन क्यों हैंअलौकिक रहस्य में प्रिय की प्रेम में अबाद्ध विरही कि व्याकुल व्यथा को व्यक्त करते हुए कभी कहते हैं आखिर आज यह प्रियतम इतने मौन क्यों हैंअलौकिक रहस्य में प्रिय की प्रेम में अबाद्ध विरही कि व्याकुल व्यथा को व्यक्त करते हुए कभी कहते हैं आखिर आज यह प्रियतम इतने मौन क्यों हैं
विशेष
1) भाषा में खड़ी बोली है
2) कविता रहस्य भावनाओं से युक्त है
3) वियोग श्रृंगार का वर्णन है
4) प्रियतम छोड़ जाने के बाद की स्थिति का वर्णन किया गया है