हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/स्नेह निर्झर

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स्नेह निर्झर


संदर्भ

स्नेह निर्झर' कवि सूर्य कान्त त्रिपाठी ' निराला ' द्वारा रचित है। निराला जी अपनी रचनाओं में जीवन के मार्मिक दृश्य को उजागर करते है।

प्रसंग

स्नेह निर्झर' कविता में निराला जी ने समय कि महत्व की ओर दृष्टि की है की किस प्रकार सुख के समय सभी मनुष्य के पास होते है परन्तु दुखद स्थिति में कोई साथ नहीं होता।

व्याख्या

स्नेह अर्थात् प्रेम का भाव धीरे धीरे ख़त्म हो रहा है। कवि को लग रहा है रेत रूपी उनके शरीर में किसी भी प्रकार का रस अर्थात् उमंग नहीं है। रेत के भी नीरसता छाई हुई है। अगली पंक्ति मै कवि अपने जीवन की तुलना आम की सूखी डाल से करते है, की उनका जीवन आम की सूखी डाल के समान हो गया है, उनके यौवन का समय बीत गया है और मानो वह डाल कह रही हो कि अब यहां कोयल, मोर, नहीं आते। इस प्रकार कवि बताते है कि आम की डाल के सुख के समय मोर और कोयल उसके पास आए थे अब वो नहीं आते और ना ही उसकी परवाह करते है। इस तरह कवि अपनी स्थिति भी व्यक्त कर रहे है। कवि कहते है, मैं उस पंक्ती के समान हू जिसे लिखा तो गया है, परन्तु उसका अर्थ नही है। अर्थात् उनके अस्तित्व का कोई मतलब नहीं है। कवि बताते है कि उन्होंने अपने यौवन काल में दुनिया को अपनी रचनाएं दी है जिस प्रकार एक पेड़ अपनी फल और फूल देत हैं। कवि बताते है की उन्होंने अपनी रचनाओं से लोगो को प्रभावित किया है। कवि अपने यौवन काल को याद करते हैं अन्तिम में कवि कहते है कि प्रियतमा अब मिलने नहीं आती अर्थात् नए विचार अब नहीं आते। वह मानसिक और शारीरिक रूप से इतने जर्जित हो गए है को उन्हें अब कोई नए विचार नहीं आते। कवि बताते है की हरी हरी घास पर प्रेमिका के माध्यम से कविता को व्यक्त करते हुए कहते है कि वह उनका इंतजार किया करती थी। अब उनकी कविता ने भी उन्हें त्याग दिया है। कवि बताते है उनके हृदय में अमावस्या छाई हुई है। कवि कहते है, वह अलक्षित हो गए है। अर्थात् अदृश्य के समान हो गए है उनके होने और ना होने से अब किसी को फर्क नहीं पड़ता।


विषेश

1) सरल भाषा है।

2) प्रतीकात्मकता विद्यमान हैं।

3)पुलिन पर प्रियतमा में अनुप्रास अलंकार है।

4) तत्सम शब्दों का प्रयोग है। और संगीतत्मक भी है।

5) लयात्मकत।