हिंदी पत्रकारिता/पीत पत्रकारिता

हिंदी पत्रकारिता
 ← लघु पत्रिका आंदोलन पीत पत्रकारिता जनतांत्रिक व्यवस्था में चौथे खंभे के रूप में पत्रकारिता का दायित्व → 

पीत पत्रकारिता

सम्पादन

आज के दौर में पत्रकारिता का स्वरूप बदल गया है। पत्रकारिता के मूल सिद्धान्तो को ताक पर रखकर की जाने वाली पत्रकारिता ही पीत पत्रकारिता है। ज्यादतर समाचार संगठन आगे निकलने की होड़ में पत्रकारिता धीरे-धीरे अपना दायरा बढ़ता जा रहा है। बाजारवादी ताकतों ने पत्रकारिता को व्यवसाय की जगह व्यापार का स्वरूप प्रदान कर दिया। इसे ध्यान में रखते हुए कई बड़े राजनीतिक और व्यावसायिक घरानों का पत्रकारिता के क्षेत्र में आगमन हुआ, जिनका मुख्य उद्देश्य जनसेवा न होकर समाज और सत्ता पर नियंत्रण बनाये रखना है। उन्हें यह भली भाँति मालूम है कि पत्रकारिता एक ऐसा जरिया है, जिससे जनसमूह में पैठ बनाई जा सकती है।बदलते हुए परिदृश्य में जनसमूह को आर्कषित करने के लिए समाचारों को सनसनीखेज बनाना, तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना तथा चटपटी कहानियाँ प्रकाशित एवं प्रसारित करना सम्पादकीय नीति का बना दिया गया है। इसके दायरे में निम्न गतिविधियाँ आती है –

  1. किसी समाजार या विचार का पआकाशन प्रसारण पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर करना।
  2. किसी समाचार या विचार के वढ़ा-चढ़ाकर पेश करना।
  3. किसी समाचार या विचार का प्रस्तुतीकरण सनसनीखेज तरीके से करना।
  4. फीचर के रूप में चटपटी, मसालेदार और मनगढ़ंत कहानियों को पेश करना।
  5. मानसिक और शारीरिक उत्तेजना को बढ़ावा देने वाले चित्रों और कार्टूनों का प्रकाशन करना।
  6. समाज को अहम मुद्दों को दरकिनार कर अपराध और सिनेमा से जुडी गतिविधियों का प्रस्तुतीकरण।
  7. राजनीतिक और आर्थिक प्रभुत्व वाले समूह से प्रभावित होकर पत्रकारिता करना।

पत्रकारिता की साख बनाए रखना हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है,क्योंकि इसमें निम्न सिद्धान्तों का पालन करना अत्यन्त जरूरी होता है -

  1. यथार्थता
  2. वस्तुपरकता
  3. निष्पक्षता
  4. संतुलन
  5. स्त्रोत