हिन्दी भाषा और उसकी लिपि का इतिहास
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'मानक' शब्द अंग्रेज़ी के 'standard' के प्रतिशब्द के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। ‘मानक' शब्द संस्कृत 'मान' में स्वार्थ प्रत्यय 'क' के लगने से बना है। 'मानक' के लिए शुद्ध परिनिष्ठित टकसाली और आदर्श आदि शब्द भी प्रचलित हैं। किंतु 'मानक' शब्द का प्रचलन अधिक है। 'मानक' शब्द का मूल अर्थ है जो सबको मान्य हों - अर्थात् अगर भाषा के संदर्भ में देखा जाए तो भाषा की मानकता का आधार भाषा - वैज्ञानिक या व्याकरणिक नहीं होता अपितु भाषा का वह रूप जो सर्वमान्य हो वही भाषा का मानक रूप होता है।

समाज के पढ़े-लिखे शिष्ट तथा महत्त्वपूर्ण लोगों द्वारा भाषा के जिस रूप का प्रयोग बहुतायत से किया जाता है, भाषा का वही रूप 'मानक' कहलाता है।

लिपि में 'चयन' का अत्यंत महत्त्व है। लिपि में प्राप्त एकाधिक रूपों में से किसी एक रूप का चयन ही उसकी 'मानकता' है। विद्वानों ने समय - समय पर देवनागरी के कुछ दोषों का वर्णन किया है, हालाँकि आज कंप्यूटर के आ जाने के कारण लिपि की मानकता और एकरूपता निश्चित हो जाने के कारण काफ़ी दोषों का तो स्वयं हीं निवारण हो चुका है।

सन्दर्भ

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  1. हिन्दी भाषा: विकास एवं व्यावहारिक प्रयोजन। मुकेश अग्रवाल।