हिन्दी साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल )/आधुनिक काल

हिन्दी साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल )
आधुनिक काल नवजागरण की अवधारणा → 

आधुनिकता की अवधारणा सम्पादन

हिन्दी साहित्य में आधुनिकता का उदय कब हुआॽ इस सवाल के जवाब इससे जुड़ा हुआ है कि हमारी आधुनिकता सम्बन्धी समझदारी क्या है ॽ आधुनिकता के मायने हमारे लिए क्या हैंॽ आधुनिकता के बारे में आमजनों की प्रचलित समझदारी कुछ ऐसी रही है कि आधुनिकता का अर्थ मध्यकालीनता से मुक्ति है। मध्ययुगीनता से मुक्ति का तात्पर्य मोटे तौर पर श्रध्दा, आस्था और विश्वास की जगह क्रमशः तर्क, विवेक और विचार की स्थापना है। चूँकि आधुनिकता का उपयोग एक बड़े कालखण्ड का वर्णन करने के लिए होता है। अतः आधुनिकता को उसके कालगत सन्दर्भ में ही देखना चाहिए। आधुनिकता के जिस रूप की प्रचलित अर्थों में समाज के विभिन्न क्षेत्रों में चर्चा होती है, वह वस्तुतः एक यूरोपीय अवधारणा है। हिन्दी में प्रयुक्त होने वाली आधुनिकता का अंग्रेजी पर्याय 'माडर्निटी' है।


हिन्दी साहित्य में आधुनिकता के उदय पर बात करने से पूर्व यह सदैव ध्यान रखना चाहिए कि आधुनिकता कोरी साहित्यिक अवधारणा नहीं है, यह अन्य ज्ञानानुशासनों से होती हुई साहित्य में आई है और उसका एक अनिवार्य कालगत सन्दर्भ रहा है। हिन्दी साहित्य में आधुनिकता का उदय भारतेन्दु-युग से माना जाता है। सवाल उठता है, क्योंॽ क्या भारतेन्दु-युग से पहले हिन्दी साहित्य के इतिहास कें आधुनिकता की झलक नहीं दिखती? यदि नहीं तो उसके क्या कारण रहेॽ भारतेन्दु युग में ऐसा क्या होता है, जिससे हिन्दी साहित्य में आधुनिकता का उदय माना जाने लगता हैॽ इसका मुख्य कारण भारतेन्दु युग की रचनाओं की अन्तर्वस्तु पारम्परिकता और भाषा आधुनिकता है। भारतेन्दु-मण्डल के रचनाओं की इस चेतना का गहरा सम्बन्ध उस दौर के हिन्दी पत्रकारिता के पेशे से है।कहना न होगा कि पत्रकारिता के पेशे से जुडे़ रहने के कारण यह अंग्रेजी राज की प्रगतीशीलता के आवरण में छिपे, भारत के स्थिर विकास और आर्थिक दोहन के मध्य अटूट सम्बन्ध को समझने में सफल हो सके थे।

आधुनिकता के भौतिक आधार सम्पादन

आधुनिकता के भौतिक आधारों से तात्पर्य एक ओर तो मुद्रण यंत्र और यातायात के समुन्नत साधनों के निर्माण और प्रचालन से है, तो दूसरी ओर पूँजीवाद की विकसित अवस्था से है। हजारीप्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी साहित्य में सर्वप्रथम आधुनिकता के इन्हीं भौतिक आधारों में से एक की पहचान करते हुए इस बात को रेखांकित किया कि साहित्य में आधुनिकता का वाहक प्रेस होता है और उसके प्रचार के वाहक यातायात के समुन्नत साधन होते हैं। प्रेस आधुनिकता के प्रचार-प्रसार के लिए जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही मधयकालीनता के प्रचार-प्रसार के लिए भी। उदाहरण के लिए छपाई के प्रारम्भ होने से न केवल आधुनिक ज्ञान का, अपितु पारम्परिक महाकाव्यों, पुराणों, सन्तों की जीवनियों और अन्य धार्मिक साहित्य का भी प्रसार हुआ। जिससे सम्प्रेषण की क्रान्ति का श्रीगणेश हो चुका था। सम्प्रेषण की क्रान्ति का श्रीगणेश होने का सम्बन्ध तकनीक से है, जबकि सम्प्रेषण की अन्तर्वस्तु का सम्बन्ध उससे जुड़ी ऐतिहासिक चेतना से है।#[१]

साहित्य में आधुनिकता के मूल सरोकार सम्पादन

हिन्दी नवजागरण के अग्रदूतों की भूमिका हिन्दी में साहित्यकारों ने ही निभाई थी। यहाँ बांग्ला और मराठी नवजागरण की तरह समाज सुधारकों या धर्म-सुधारकों ने यह मोर्चा नहीं संभाला था। इसीलिए हिन्दी-भाषी क्षेत्र में सामाजिक, राष्ट्रीय और सामाजिक, राष्ट्रीय और राजनीतिक जागरूकता की जिम्मेदारी इन हिन्दी के साहित्यकारों पर ही थी। भारतेन्दु ने हिन्दी साहित्य को जड़ता की स्थिति से गतिशील दशा में लाने का काम किया। इन अर्थों में भारतेन्दु युगान्तकारी थे और इस युगान्तकारी भूमिका के मूल में ही उनकी आधुनिकता निहित है। उनकी इस ऐतिहासिक और युगान्तकारी भमिका को सबसे पहले आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने पहचाना था और उसे स्थापित करने का काम रामविलास शर्मा ने किया। भारतेन्दु की इन भूमिकाओं को जाने बिना उनकी आधुनिकता की अवधारणा के नहीं समझा जा सकता है।


भारतेन्दु देशोन्नति के लिए जिन पाँच बातों पर बल देते हैं, उनका सम्बन्ध देशोन्नति और स्वत्व के निर्माण से है। वे पाँच बातें है - निज भाषा की उन्नति, कला (शिक्षा) का प्रचार-प्रसार, राष्ट्रीय चिन्तन और समकालीन परिस्थितियों के प्रति आम-जन के यथार्थ-चेतना का उदय तथा जातीय एकता। यदि इन पाँच बातों की उद्देश्यपरकता को ध्यान में रखें तो कहना न होगा कि इन बातों के माध्यम से भारतेन्दु औपनिवेशिक नीतियों के समक्ष भारत की प्रतिरोधक क्षमता विकसित करना चाह रहे थे। आज पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहते है, तो इसमें भारतेन्दु और भारतेन्दुयुगीन पत्रकारिता की ऐतिहासिक भूमिका को नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता है। आधुनिकता की चेतना का प्रखर रूप भारतेन्दु के यहाँ देखने को मिलती है।


भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने हिन्दी साहित्य को दिशा प्रदान करते हुए जिस कार्यसूची को प्राथमिकता दी थी। महावीरप्रसाद द्विवेदी ने उसी कार्यसूची को आगे बढ़ाने का काम किया। भारतेन्दु यदि अपने युग की धुरी थे, तो महावीरप्रसाद द्विवेदी ने भी हिन्दी साहित्य में वही केन्द्रीयता हासिल की थी। द्विवेदी जी अपनी भाषा विषयक मान्यताओं से इतर 'सम्पति-शास्त्र' के विवेचन के कारण हिन्दी साहित्य में अन्यतम हैं।आर्थिक शोषण की उस प्रक्रिया को तथ्यों और आँकड़ों के अलोक में सामने लाने काम महावीरप्रसाद द्विवेदी ने किया। द्विवेदी जी के यहाँ समकालीनता एक प्रधान प्रवृति है, जिसका सम्बन्ध राष्ट्रीय चिन्ता से जुडा हुआ है और जिसको स्पषट रूप से डॉ. रामविलास शर्मा ने अपनी पुस्तक 'महावीरप्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण' में दिखाया है। महावीरप्रसाद द्विवेदी के निबन्धों का उद्देश्य उस मुक्ति की मानसिकता का निर्माण करना था, जिसे हम आधुनिकता कहते हैं।

सन्दर्भ सम्पादन

  1. [१]