हिन्दी साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल )/नवजागरण की अवधारणा
नवजागरण की अवधारणा
सम्पादन'नवजागरण' एक आधुनिक एवं व्यापक अवधारणा है । हिन्दी में इसके लिए पहले ‘पुनरुत्थान’ और ‘पुनर्जागरण’ शब्द का प्रयोग होता था । बाद में इसे 'नवजागरण' की संज्ञा दी गई ।'नवजागरण' शब्द मध्ययुग और आधुनिक युग के बीच की संक्रान्ति की अवस्था का वाचक है । दरअसल यूरोप में 13वीं सदी से लेकर 16वीं सदी के मध्य तक एक बौद्धिक एवं सांस्कृतिक आंदोलन चला । इस बीच ग्रीक-रोमन साहित्य, कला और दर्शन का यथेष्ट विकास हुआ। यूरोपीय इतिहास में यह समय ‘रेनेसां’ के नाम से जाना जाता है । ‘रेनेसां’ के दूसरे चरण को ‘एनलाइटेनमेंट’ के नाम से जाना जाता है । इसे ‘ज्ञानोदय का युग’ भी कहा जाता है । इस समय वैज्ञानिकता, तर्क, व्यक्तिगत स्वाधीनता आदि विषयों पर विचार किया गया। इसकी शुरुआत 16वीं सदी से माना जाता है। भारत में ‘रेनेसां’ और ‘एनलाइटेनमेंट’ दोनों अलग-अलग दौर के नहीं थे । यहाँ पर दोनों का विकास एक साथ सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय जागरण के साथ हुआ। यूरोपीय इतिहास में अंधकार युग के बाद ‘रेनेसां’ आता है । उस समय यूरोप में जो अंधकार युग था, वह हमारे यहाँ भक्ति काल का समय है । जिसे लोकजागरण के नाम से जाना जाता है । ध्यान देने की बात है,कि यूरोपीय नवजागरण जिन विषयों को आगे लेकर चल रहा था, भारतीय नवजागरण उससे भिन्न था। यूरोपीय नवजागरण में जो स्थान इटली का है, भारतीय नवजागरण में वही स्थान बंगाल का है ।
परिभाषा
सम्पादन"19वीं शताब्दी के दौरान संपूर्ण भारत में एक नयी बौद्धिक चेतना और सांस्कृतिक उथल-पुथल दृष्टिगोचर होती है। विदेशी सत्ता के हाथों पराजय, उपनिवेशवाद तथा ज्ञान-विज्ञान के प्रसार के साथ-साथ पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से यह जागृति उत्पन्न हुई। इस जागृति के दौरान मानव को केन्द्र में लाया गया, विवेक की केन्द्रीयता, ज्ञान-विज्ञान का प्रसार, रूढ़ियों का विरोध और सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन का नये सिरे से चिन्तन आरम्भ हुआ। इस नवीन चेतना द्वारा लोगों जगाना ही नवजागरण कहलाया।"