"हिंदी भाषा और साहित्य ख/घनानंद कवित्त": अवतरणों में अंतर

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<poem>रूप निधान सुजान लखे बिन आँखिन दीठि हि पीठि दई है ।
अखिल ज्यौं खरकै पुतरीन मैं, सूल की मूल सलाक भई है ।
ठौर कहूँ न लहै ठहरानि की मूदे महा अकुलानि भई है ।
बूढत ज्यौ घनआनँद सोचि, दई बिधि व्याधि असाधि नई है।</poem>
 
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