"हिंदी भाषा और साहित्य ख/घनानंद कवित्त": अवतरणों में अंतर

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<poem>हीन भएँ जलमीन अधीन कहा कछु मो अकुलानि समानै ।
नीर सनेही को लाय कलंक निरास द्दवैह्वै कायर त्यागत प्रानै ।
प्रीति की रीति सु क्यों समझै जड़ मतिमीत के पानि कीको प्रमानै ।
या मन की जु दसा घनआँनद जीव की जीवनि जान ही जानै ।
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