आदिकालीन एवं मध्यकालीन हिंदी कविता/अमीर खुसरो
अमीर खुसरो के दोहे
गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डारे केस।
चल खुसरो घर आपने, सांझ भयी चहु देस॥[१]
- व्याख्या
खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।
तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग॥[१]
- व्याख्या
देख मैं अपने हाल को रोऊँ ज़ार–ओ–ज़ार।
वै गुनवन्ता बहुत हैं हम हैं औगुनहार॥[२]
- व्याख्या
चकवा चकवी दो जने उनको मारे न कोय।
ओह मारे करतार कै रैनविछौही होय॥[२]
- व्याख्या
सेज सूनी देख के रोऊँ दिन–रैन।
पिया–पिया कहती मैं पल भर सुख न चैन॥[२]
- व्याख्या
संदर्भ
- ↑ १.० १.१ हरिकृष्ण, देवसरे. अमीर खुसरो. नई दिल्ली: सस्ता साहित्य मंडल. पृ. ९६. आइएसबीएन 9788173096082.
- ↑ २.० २.१ २.२ हरिकृष्ण, देवसरे. अमीर खुसरो. नई दिल्ली: सस्ता साहित्य मंडल. पृ. ९८. आइएसबीएन 9788173096082.