गुरुदेव को अंग

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पीछे लागा जाइ था, लोक वेद के साथि।
आगे ते सतगुरु मिल्या, दीपक दीया हाथि ॥११॥[]

व्याख्या

सतगुरु हम सूँ रीझि करि, एक कह्या प्रसंग।
बरस्या बादल प्रेम का भीजि गया सब अंग॥३३॥[]

व्याख्या

सुमिरण कौ अंग

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भगति भजन हरि नाँव है, दूजा दुक्ख अपार।
मनसा बाचा क्रमनाँ, कबीर सुमिरण सार॥४॥[]

व्याख्या

तूँ तूँ करता तूँ भया, मुझ मैं रही न हूँ।
वारी फेरी बलि गई, जित देखौं तित तूँ॥९॥[]

व्याख्या

बिरह कौ अंग

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बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।
राम बियोगी न जिवै, जिवै त बीरा होइ॥१८॥[]

व्याख्या

बिरहा बिरहा जिनि कहौ, बिरहा है सुलितान।
जिह घटि बिरह न संचरै, सो घट सदा मसान॥२१॥[]

व्याख्या

परचा कौ अंग

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पारब्रह्म के तेज का, कैसा है उनमान।
कहिबे कूं सोभा नहीं, देख्याही परवान॥३॥[]

व्याख्या

कबीर कवल प्रकासिया, ऊग्या निर्मल सूर।
निस अंधियारी मिटि गई, बाजै अनहद तूर॥४३॥[]

व्याख्या

राग रामकली

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अकथ कहाँणी प्रेम की, कछु कही न जाई,
गूँगे केरी सरकरा, बैठे मुसुकाई॥टेक॥
भोमि बिनाँ अरू बीज बिन, तरबर एक भाई।
अनँत फल प्रकासिया, गुर दीया बताई।
कम थिर बैसि बिछारिया, रामहि ल्यौ लाई।
झूठी अनभै बिस्तरी सब थोथी बाई॥
कहै कबीर सकति कछु नाहीं, गुरु भया सहाई॥
आँवण जाँणी मिटि गई, मन मनहि समाई॥१५६॥[]

व्याख्या

राग केदारौ

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बाल्हा आव हमारे गेहु रे, तुम्ह बिन दुखिया देह रे॥टेक॥
सब को कहै तुम्हारी नारी, मोकौ इहै अंदेह रे।
एकमेक ह्वै सेज न सोवै, तब लग कैसा नेह रे॥
आन न भावै नींद न आवै, ग्रिह बन धरै न धीर रे।
ज्यूं कामी को काम पियारा, ज्यूं प्यासे कूं नीर रे॥
है कोई ऐसा परउपगारी, हरि सूं कहै सुनाई रे॥
ऐसे हाल कबीर भये हैं, बिन देखे जीव जाइ रे॥३०७॥[]

व्याख्या

संदर्भ

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  1. कबीर ग्रंथावली २०११, p. ५०.
  2. कबीर ग्रंथावली २०११, p. ५१.
  3. ३.० ३.१ कबीर ग्रंथावली २०११, p. ५२.
  4. ४.० ४.१ कबीर ग्रंथावली २०११, p. ५५.
  5. कबीर ग्रंथावली २०११, p. ५८.
  6. कबीर ग्रंथावली २०११, p. ६०.
  7. कबीर ग्रंथावली २०११, p. १५२.
  8. कबीर ग्रंथावली २०११, p. १९२.
  • कबीर ग्रंथावली, संपादक: श्यामसुंदर दास, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, २०११, आइएसबीएन: 978-9352218981